सांकेतिक तस्वीर
नई दिल्ली
मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में एस्मा लगाने के मामले में सफाई दी है। मंत्रालय ने कहा है कि अभी डीयू में एस्मा लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। हायर एजुकेशन के सेक्रटरी आर.सुब्रमण्यन ने ट्वीट करके सफाई दी, 'दिल्ली यूनिवर्सिटी में एस्मा लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। दरअसल डूटा स्ट्राइक के दौरान प्रभावित होने वाले कुछ छात्रों ने ही एग्जाम के दौरान हड़तालों पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया था। हमने इस पर गौर-विचार किया और हम इस सुझाव पर अमल नहीं करने जा रहे हैं।'
दो दिनों पहले यूनिवर्सिटी के शिक्षकों ने डीयू ऐक्ट पर विचार करे के लिए वर्किंग ग्रुप के गठन पर आपत्ति जताई थी। 4 अक्टूबर को मंत्रालय ने यूनिवर्सिटी को एक पत्र भेजकर एक वर्किंग ग्रुप के गठन के बारे में सूचित किया था। वर्किंग ग्रुप में डीयू के एक प्रतिनिधि समेत सात सदस्य शामिल थे। इस कमिटी का गठन डीयू ऐक्ट पर गौर-विचार करने के लिए किया गया था और रिपोर्ट जमा करने के लिए 30 दिन का समय दिया गया था। बाद में एचआरडी मिनिस्टर प्रकाश जावडेकर ने यूनिवर्सिटी के एक शिक्षक को मेल पर जवाब दिया और कहा कि उन्होंने उस ग्रुप को भंग करने का आदेश दे दिया है। इस पर शिक्षकों ने प्रसन्नता का इजहार किया और कहा कि यह उनकी जीत है। शिक्षकों ने कहा कि इससे सरकार का असली चेहरा सामने आया है।
ध्यान रहे कि खबरों में डीयू में कुछ गतिविधियों को एस्मा के दायरे में लाने की संभावना जताई गई थी। कहा गया था कि परीक्षा, उत्तरपुस्तिकाओं की जांच और पढ़ने-पढ़ाने की गतिविधि को आवश्यक सेवा संरक्षण अधिनियम (एस्मा) के अधीन लाया जा सकता है। इन गतिविधियों को एस्मा के अधीन लाने का मकसद है कि टीचिंग, नॉन टीचिंग स्टाफ और छात्रों की आजादी कुछ हद तक प्रभावित होगी। वे उन कामों में संलिप्त नहीं हो सकते हैं जिससे यूनिवर्सिटी में इन गतिविधियों में बाधा पैदा हो या किसी तरह से ये गतिविधियां प्रभावित हों।
एस्मा के पीछे क्यों पड़ी सरकार?
बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद दो बार यूनिवर्सिटी में मूल्यांकन (उत्तरपुस्तिकाओं की जांच) का बहिष्कार किया गया है। 2016 में डेल्ही यूनिवर्सिटी टीचर्स असोसिएशन (डुटा) ने कार्यभार की बदली स्थिति के खिलाफ 55 दिनों तक मूल्यांकन का बहिष्कार किया था। इस साल फिर 40 दिनों तक मूल्यांकन का बहिष्कार किया गया। इस बार सरकार की कुछ स्कीमों जैसे ऑटोनोमी, रोस्टर पॉलिसी में बदलाव एवं अन्य स्कीमों के खिलाफ डुटा ने यह कदम उठाया था। इससे उत्तरपुस्तिकाओं की जांच का काम प्रभावित हुआ जिसे मंत्रालय ने गंभीरता से लिया था।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में एस्मा लगाने के मामले में सफाई दी है। मंत्रालय ने कहा है कि अभी डीयू में एस्मा लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। हायर एजुकेशन के सेक्रटरी आर.सुब्रमण्यन ने ट्वीट करके सफाई दी, 'दिल्ली यूनिवर्सिटी में एस्मा लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। दरअसल डूटा स्ट्राइक के दौरान प्रभावित होने वाले कुछ छात्रों ने ही एग्जाम के दौरान हड़तालों पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया था। हमने इस पर गौर-विचार किया और हम इस सुझाव पर अमल नहीं करने जा रहे हैं।'
दो दिनों पहले यूनिवर्सिटी के शिक्षकों ने डीयू ऐक्ट पर विचार करे के लिए वर्किंग ग्रुप के गठन पर आपत्ति जताई थी। 4 अक्टूबर को मंत्रालय ने यूनिवर्सिटी को एक पत्र भेजकर एक वर्किंग ग्रुप के गठन के बारे में सूचित किया था। वर्किंग ग्रुप में डीयू के एक प्रतिनिधि समेत सात सदस्य शामिल थे। इस कमिटी का गठन डीयू ऐक्ट पर गौर-विचार करने के लिए किया गया था और रिपोर्ट जमा करने के लिए 30 दिन का समय दिया गया था। बाद में एचआरडी मिनिस्टर प्रकाश जावडेकर ने यूनिवर्सिटी के एक शिक्षक को मेल पर जवाब दिया और कहा कि उन्होंने उस ग्रुप को भंग करने का आदेश दे दिया है। इस पर शिक्षकों ने प्रसन्नता का इजहार किया और कहा कि यह उनकी जीत है। शिक्षकों ने कहा कि इससे सरकार का असली चेहरा सामने आया है।
ध्यान रहे कि खबरों में डीयू में कुछ गतिविधियों को एस्मा के दायरे में लाने की संभावना जताई गई थी। कहा गया था कि परीक्षा, उत्तरपुस्तिकाओं की जांच और पढ़ने-पढ़ाने की गतिविधि को आवश्यक सेवा संरक्षण अधिनियम (एस्मा) के अधीन लाया जा सकता है। इन गतिविधियों को एस्मा के अधीन लाने का मकसद है कि टीचिंग, नॉन टीचिंग स्टाफ और छात्रों की आजादी कुछ हद तक प्रभावित होगी। वे उन कामों में संलिप्त नहीं हो सकते हैं जिससे यूनिवर्सिटी में इन गतिविधियों में बाधा पैदा हो या किसी तरह से ये गतिविधियां प्रभावित हों।
एस्मा के पीछे क्यों पड़ी सरकार?
बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद दो बार यूनिवर्सिटी में मूल्यांकन (उत्तरपुस्तिकाओं की जांच) का बहिष्कार किया गया है। 2016 में डेल्ही यूनिवर्सिटी टीचर्स असोसिएशन (डुटा) ने कार्यभार की बदली स्थिति के खिलाफ 55 दिनों तक मूल्यांकन का बहिष्कार किया था। इस साल फिर 40 दिनों तक मूल्यांकन का बहिष्कार किया गया। इस बार सरकार की कुछ स्कीमों जैसे ऑटोनोमी, रोस्टर पॉलिसी में बदलाव एवं अन्य स्कीमों के खिलाफ डुटा ने यह कदम उठाया था। इससे उत्तरपुस्तिकाओं की जांच का काम प्रभावित हुआ जिसे मंत्रालय ने गंभीरता से लिया था।
Source : navbharattimes[dot]indiatimes[dot]com
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