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Monday, 15 October 2018

नई दिल्ली
हाल ही में एक ऐसे ट्रोजन मैलवेयर के बारे में पता चला है जो ऐंड्रॉयड डिवाइसेस पर अटैक कर रहा है। बता दें कि ट्रोजन एक खास तरह का मैलवेयर या प्रोग्राम होता है, जो दिखने में सही लगता है, लेकिन जब इसे चलाया जाता है तो यह पूरे सिस्टम (कंप्यूटर/फोन) को खराब कर देता है। इसका इस्तेमाल हैकर्स द्वारा किसी पासवर्ड को तोड़ने के लिए किया जाता है। यह यह हार्ड डिस्क के सारे डेटा और प्रोग्राम को मिटा देता है।


ट्रोजन के ज़रिए हैकर किसी भी कंप्यूटर या सिस्टम को हैक कर सकता है फिर चाहे वह कितनी भी दूरी पर क्यों न हो। अब जो ट्रोजन ऐंड्रॉयड डिवाइेसस पर अपना हमला बोल रहा है उसका नाम Gplayed है। इसे सिस्को की टेलोज़ सिक्यॉरिटी डिविजन में काम करने वाले रिसर्चर्स ने ढूंढा है।

hackers using these tricks to hack your whatsapp account
आपके WhatsApp को ऐसे हैक कर सकते हैं हैकर्स
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ट्रोजन ऐसे करता है अटैक
टेलोज़ सिक्यॉरिटी के टेक्निकल हेड वितोर वेंतूरा (Vitor Ventura) ने एक ब्लॉग पोस्ट के ज़रिए बताया कि यह ट्रोजन कई फीचर्स से लैस है। यह मैलवेयर काफी फ़्लेक्सिबल होता है यानी हैकर इसे अपने टास्क के मुताबिक ढाल सकता है और यही फीचर हैकर्स के लिए काम कर जाता है।

रिसर्च में पाया गया कि यह ट्रोजन फिलहाल टेस्टिंग के चरण में है, लेकिन इसकी प्रभावों को देखते हुए इसके बारे में बताने का फैसला किया गया। यह मैलवेयर .NET लैंग्वेज में लिखा होता है। इसमें Reznov.DLL नाम की मुख्य डीएलएल फाइल होती है, जिसकी वजह से हैकिंग संबंधित कोई भी काम आसान हो जाता है।

यह मैलवेयर एक और डीएलएल फाइल का उपयोग करता है, जिसका नाम है eCommon.dll, जिसमें ट्रोजन के लिए सपॉर्ट कोड और स्ट्रक्चर होता है। गौर करने वाली बात यह है कि यह ट्रोजन मैलवेयर किसी भी ऐंड्रॉयड डिवाइस के अलावा विडोंज डिवाइसेस पर भी अटैक कर सकता है। ऐंड्रॉयड के इसका नाम verReznov.Coampany है और इसके लिए ट्रोज़न को कई तरह की परमिशन की ज़रूरत होती है, जैसे कि डिवाइस के एडमिन का ऐक्सेस मांगना आदि।

अगर किसी ऐप में डिवाइस एडमिन का ऐक्सेस है तो उसके पास उस संबंधित डिवाइस पर पूरा कंट्रोल होगा और कंट्रोल होने का मतलब है उस डिवाइस और डेटा को नुकसान। रिसर्चर्स के मुताबिक, आने वाले वक्त में यह और भी सीरियस हो सकता है क्योंकि अब ज़्यादा से ज़्यादा ऐप डिवेलपर्स ग्राहकों को सीधे ऐप्स डिलिवर करते हैं। ऐसे में ग्राहक यह पता नहीं लगा पाते कि कौन सी वेबसाइट या ऐप वैध हैं और कौन-सी नहीं।
Source : navbharattimes[dot]indiatimes[dot]com

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