फोटो: साभार ट्विटर
हाइलाइट्स
- कावसाजी जमशेदजी पेटिगरा 1928 में देश के पहले भारतीय पुलिस उपायुक्त बने थे
- ब्रिटिश शासन की सीआईडी की दो विंग के वे प्रभारी थे
- उन्होंने पुलिस में जॉइन होने पर कोई प्रशिक्षण नहीं लिया था
- उन्होंने सादी वर्दी वाले पुलिसकर्मी के तौर पर सर्विस जॉइन की थी
आज ही के दिन यानी 24 नवंबर, 1877 को देश की अहम शख्सियत कावसाजी जमशेदी पेटिगरा का जन्म हुआ था। 1928 को मुंबई पुलिस के पहली भारतीय पुलिस उपायुक्त बनने वाले जमशेदजी का गांधीजी से काफी लगाव था। वह क्राइम ब्रांच डिविजन के प्रभारी थे और अपने खुफिया नेटवर्क की वजह से प्रसिद्ध थे। उनकी उल्लेखनीय सेवा को ब्रिटिश शासन ने कई अवॉर्ड देकर सम्मानित किया। आइए आज उनके जन्मदिन पर उनकी खास बातों के अलावा यह भी जानते हैं कि महात्मा गांधी से उनका कैसा संबंध था।
परिचय
पेटिगरा का जन्म 24 नवंबर, 1877 को जमशेदजी नौशेरवांजी पेटिगरा और धुंभाईजी बस्तावाला के यहां हुआ। उन्होंने गुजरात के सूरत से अपनी स्कूली पढ़ाई की और बाद में बॉम्बे (अब मुंबई) से पढ़ाई की। उनकी शादी अवाम्बाई से हुआ था जो जहांगीरशॉ आर्देशिर तेलीयारखान की बेटी थीं। उनको एक बेटा हुआ था। 28 मार्च, 1941 को इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।
गांधीजी से लगाव
जमशेदजी पेटिगरा ने जो हाईप्रोफाइल गिरफ्तारी की, उसके लिए वह हमेशा जाने जाएंगे। एक नहीं कई बार उनको महात्मा गांधी जैसे शख्सियत को गिरफ्तार करने का मौका मिला। वह उन अधिकारियों में शामिल थे जिन्होंने मणि भवन से 'राष्ट्रपिता' को गिरफ्तार किया था। उस दौरान भारत छोड़ो आंदोलन अपने चरम पर था। दरअसल गांधीजी और पेटिगरा के बीच प्यार और सम्मान का ऐसा संबंध था कि गांधीजी इस बात के लिए जोर देते थे कि जब उनको गिरफ्तार किया जाए तो पेटिगरा जरूर मौजूद रहें। असल में पेटिगरा दोनों तरफ के वफादार थे। वह ब्रिटिश शासन के प्रति भी उतने ही वफादार थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन को गिराने के कई प्रयासों को विफल किया था। उनकी सेवाओं के सम्मान में ब्रिटिश सरकार ने 'खान बहादुर' की उपाधि दी थी।
गांधीजी जब इंग्लैंड में होने वाले गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गए थे, उस समय उनको वहां सफर के लिए दो लोगों का अनुशंसा पत्र चाहिए था। जिन दो लोगों ने गांधीजी के लिए अनुशंसा पत्र दिया था, उनमें से एक पेटिगरा थे। वह पत्र अब तक मणि भवन में रखा है।
गांधीजी और पेटिगरा के संबंध की एक और दिलचस्प कहानी है। डॉ.गिल्डर मुंबई के एक मशहूर सर्जन और गांधीवादी थे। वह हमेशा राष्ट्रीय नेताओं के साथ गिरफ्तारी दिया करते थे। एक बार वह पेटिगरा का इलाज कर रहे थे। उनको अचानक पता चला कि गांधीजी गिरफ्तारी देने जा रहे हैं। डॉ.गिल्डर ने गांधीजी को एक पत्र लिखकर खेद जताया कि वह पेटिगरा का इलाज कर रहे हैं, जिस वजह से वह गिरफ्तारी देने नहीं आ पाएंगे। उनके इस आग्रह को गांधीजी ने तुरंत मंजूर कर लिया।
इसके अलावा जब गांधीजी की हत्या मामले में सुनवाई हुई तो पेटिगरा के बेटे नौशेरवां खास सरकारी वकील के सहायक सॉलिसिटर थे।
पुलिस में कैसे आए?
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में इतिहासकार दीपक राव के हवाले से कहा गया है कि पेटिगरा ने पुलिस का औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था। उस समय उन्होंने सादी वर्दी वाले पुलिसकर्मी के तौर पर पुलिस फोर्स जॉइन किया था जिसे 'सफेदवाला' कहा जाता था। जब उनको सर्विस जॉइन किए हुए छह साल हो गए थे तब 1909 में क्राइम इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (सीआईडी) का गठन हुआ था। पेटिगरा को शहर की अच्छी खासी जानकारी थी और पारसी समुदाय के अंदर मजबूत संबंध थे। इसे देखते हुए सीआईडी की दो शाखों-क्राइम और पॉलिटिक्स-उनको सौंपा गया। अपने पूरे करियर में उन्होंने सीआईडी में ही सेवा दी और कभी थाने में नियुक्त नहीं हुए। 1920 में उनको स्पेशल ब्रांच का सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस यानी पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया। 1928 में उनको स्पेशल ब्रांच का डीसीपी (डेप्युटी कमिशनर ऑफ पुलिस) नियुक्त किया गया और इस तरह से बॉम्बे में डीसीपी के पद पर तैनात होने वाले वह पहले भारतीय बन गए। उनका काम इतना असरदार था कि 1932 में जहां अन्य अधिकारी इंपीरियल सर्विस एग्जामिनेशन की तैयारी कर रहे थे, उनको बगैर तैयारी के ही इंपीरियल पुलिस में नामित कर दिया गया।
(फोटो: साभार ट्विटर)
पेटिगरा के पोते कवास पेटिगरा ने बताया कि ब्रिटिश शासन में यह दुर्लभ होता था कि किसी भारतीय के हाथ में ब्रिटिश अधिकारियों की कमान दी जाए। लेकिन उनके दादा अपवाद थे। उन्होंने एक समाचार पत्र से बातचीत में बताया था कि भारत छोड़ो आंदोलन जब चरम पर तब भी ब्रिटिश शासन ने उन पर भरोसा जताया और साथ ही कांग्रेस पार्टी को भी उन पर पूरा भरोसा था। वह दोनों पक्ष के लिए बराबर अहमियत रखते थे।
दक्षिण मुंबई के मेट्रो बिग सिनेमा के पास उनकी प्रतिमा है।
परिचय
पेटिगरा का जन्म 24 नवंबर, 1877 को जमशेदजी नौशेरवांजी पेटिगरा और धुंभाईजी बस्तावाला के यहां हुआ। उन्होंने गुजरात के सूरत से अपनी स्कूली पढ़ाई की और बाद में बॉम्बे (अब मुंबई) से पढ़ाई की। उनकी शादी अवाम्बाई से हुआ था जो जहांगीरशॉ आर्देशिर तेलीयारखान की बेटी थीं। उनको एक बेटा हुआ था। 28 मार्च, 1941 को इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।
गांधीजी से लगाव
जमशेदजी पेटिगरा ने जो हाईप्रोफाइल गिरफ्तारी की, उसके लिए वह हमेशा जाने जाएंगे। एक नहीं कई बार उनको महात्मा गांधी जैसे शख्सियत को गिरफ्तार करने का मौका मिला। वह उन अधिकारियों में शामिल थे जिन्होंने मणि भवन से 'राष्ट्रपिता' को गिरफ्तार किया था। उस दौरान भारत छोड़ो आंदोलन अपने चरम पर था। दरअसल गांधीजी और पेटिगरा के बीच प्यार और सम्मान का ऐसा संबंध था कि गांधीजी इस बात के लिए जोर देते थे कि जब उनको गिरफ्तार किया जाए तो पेटिगरा जरूर मौजूद रहें। असल में पेटिगरा दोनों तरफ के वफादार थे। वह ब्रिटिश शासन के प्रति भी उतने ही वफादार थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन को गिराने के कई प्रयासों को विफल किया था। उनकी सेवाओं के सम्मान में ब्रिटिश सरकार ने 'खान बहादुर' की उपाधि दी थी।
गांधीजी जब इंग्लैंड में होने वाले गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गए थे, उस समय उनको वहां सफर के लिए दो लोगों का अनुशंसा पत्र चाहिए था। जिन दो लोगों ने गांधीजी के लिए अनुशंसा पत्र दिया था, उनमें से एक पेटिगरा थे। वह पत्र अब तक मणि भवन में रखा है।
गांधीजी और पेटिगरा के संबंध की एक और दिलचस्प कहानी है। डॉ.गिल्डर मुंबई के एक मशहूर सर्जन और गांधीवादी थे। वह हमेशा राष्ट्रीय नेताओं के साथ गिरफ्तारी दिया करते थे। एक बार वह पेटिगरा का इलाज कर रहे थे। उनको अचानक पता चला कि गांधीजी गिरफ्तारी देने जा रहे हैं। डॉ.गिल्डर ने गांधीजी को एक पत्र लिखकर खेद जताया कि वह पेटिगरा का इलाज कर रहे हैं, जिस वजह से वह गिरफ्तारी देने नहीं आ पाएंगे। उनके इस आग्रह को गांधीजी ने तुरंत मंजूर कर लिया।
इसके अलावा जब गांधीजी की हत्या मामले में सुनवाई हुई तो पेटिगरा के बेटे नौशेरवां खास सरकारी वकील के सहायक सॉलिसिटर थे।
पुलिस में कैसे आए?
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में इतिहासकार दीपक राव के हवाले से कहा गया है कि पेटिगरा ने पुलिस का औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था। उस समय उन्होंने सादी वर्दी वाले पुलिसकर्मी के तौर पर पुलिस फोर्स जॉइन किया था जिसे 'सफेदवाला' कहा जाता था। जब उनको सर्विस जॉइन किए हुए छह साल हो गए थे तब 1909 में क्राइम इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (सीआईडी) का गठन हुआ था। पेटिगरा को शहर की अच्छी खासी जानकारी थी और पारसी समुदाय के अंदर मजबूत संबंध थे। इसे देखते हुए सीआईडी की दो शाखों-क्राइम और पॉलिटिक्स-उनको सौंपा गया। अपने पूरे करियर में उन्होंने सीआईडी में ही सेवा दी और कभी थाने में नियुक्त नहीं हुए। 1920 में उनको स्पेशल ब्रांच का सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस यानी पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया। 1928 में उनको स्पेशल ब्रांच का डीसीपी (डेप्युटी कमिशनर ऑफ पुलिस) नियुक्त किया गया और इस तरह से बॉम्बे में डीसीपी के पद पर तैनात होने वाले वह पहले भारतीय बन गए। उनका काम इतना असरदार था कि 1932 में जहां अन्य अधिकारी इंपीरियल सर्विस एग्जामिनेशन की तैयारी कर रहे थे, उनको बगैर तैयारी के ही इंपीरियल पुलिस में नामित कर दिया गया।
पेटिगरा के पोते कवास पेटिगरा ने बताया कि ब्रिटिश शासन में यह दुर्लभ होता था कि किसी भारतीय के हाथ में ब्रिटिश अधिकारियों की कमान दी जाए। लेकिन उनके दादा अपवाद थे। उन्होंने एक समाचार पत्र से बातचीत में बताया था कि भारत छोड़ो आंदोलन जब चरम पर तब भी ब्रिटिश शासन ने उन पर भरोसा जताया और साथ ही कांग्रेस पार्टी को भी उन पर पूरा भरोसा था। वह दोनों पक्ष के लिए बराबर अहमियत रखते थे।
दक्षिण मुंबई के मेट्रो बिग सिनेमा के पास उनकी प्रतिमा है।
Source : navbharattimes[dot]indiatimes[dot]com
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