सांकेतिक तस्वीर
नई दिल्ली
देश के IITs और IISc ने तरक्की का एक लंबा सफर तय किया है और अभी उनका यह सफर जारी है। सफर के इस क्रम में ये संस्थान अब उन चीजों पर भी काम कर रहे हैं जिनको कभी असंभव समझा जाता था। आइये जानते हैं कि कैसे IITs और IISc असंभव को संभव बनाने के मिशन पर काम कर रहे हैं...
वरुण भालेराव ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (आईआईटी), बाम्बे से इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग की थी लेकिन उनको कभी उम्मीद नहीं थी कि उनको आईआईटी बॉम्बे में पढ़ाने का मौका मिलेगा। इसका कारण यह है कि इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग के बाद उन्होंने कैलिफॉर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से अस्ट्रॉनमी में पीएचडी की। उस समय आईआईटी बॉम्बे के लिए अस्ट्रॉनमी एक अजनबी विषय था। लेकिन 2017 में भालेराव उस समय चौंक गए जब आईआईटी बॉम्बे ने उनको पहले अस्ट्रॉनमर के तौर पर नियुक्त कर लिया। इसके अलावा एक साल के अंदर आईआईटी-बॉम्बे ने चार और अस्ट्रॉनमर को हायर किया। अब भालेराव और उनकी टीम एक विशिष्ट टेलिस्कोप बनाने पर काम कर रही है। आईआईटी बॉम्बे के असिस्टेंट प्रफेसर और सोशल साइंटिस्ट अनुष कपाड़िया का कहना है कि आईआईटीज जिस बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं, आईआईटी बॉम्बे उसका आईना है। उन्होंने कहा, 'हम शिक्षा के प्रारूप को बदलने के लिए काम कर रहे हैं।'
प्रतिभा पलायन को रोकने का प्रयास
प्रतिभा पलायन भारत की बड़ी समस्या रही है लेकिन 2012 के बाद पिछले पांच सालों में प्रतिभा पलायन का रिवर्स रूप सामने आया है। बड़ी संख्या में वैज्ञानिक और इंजिनियर्स देश लौटे हैं और ज्यादातर को सर्वश्रेष्ठ आईआईटीज, आईआईएससी और अन्य प्रमुख संस्थानों में जगह मिली है। डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नॉलजी (डीएसटी) के डेटा के मुताबिक, 2012 से पांच साल पहले के मुकाबले पांच साल बाद विदेश से लौटने वाले असाधारण युवा वैज्ञानिकों को दी जाने वाली फेलोशिप में 70 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इनमें से कई युवा वैज्ञानिक और इंजिनियर्स ने आईआईटीज, आईआईएससी और उभरते भारतीय वैज्ञानिक शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान को जॉइन किया है।
पिछले पांच सालों में आईआईटी मद्रास ने 25-30 युवा फैकल्टी को भर्ती किया है। 2012 के बाद से आईआईटी बॉम्बे ने 30 से ज्यादा प्रफेसरों को हायर किया है। अगले कुछ सालों में आईआईसी बड़ी संख्या में युवा फैकल्टी को भर्ती करने की योजना बना रहा है। संस्थानों द्वारा युवा फैकल्टी पर फोकस करने का नतीजा यह सामने आया है कि देश के कुछ प्रमुख संस्थानों में 1980 तक शोधकर्ताओं की औसत आयु जहां 60 साल थी अब घटकर 40 साल से नीचे हो गई है।
रिसर्च पर फोकस
अब चूंकि आईआईटीज का फोकस रिसर्च पर ज्यादा बढ़ता जा रहा है, इसलिए वहां छात्रों की आबादी में भी बदलाव हो रहा है। पहले ये संस्थान मुख्य रूप से अंडरग्रैजुएट छात्रों के संस्थान थे लेकिन अब यहां मास्टर्स और पीएचडी के स्टूडेंट्स की भरमार है। उदाहरण के लिए आईआईटी दिल्ली में अब ग्रैजुएट छात्रों की संख्या करीब 65 फीसदी है। ये बदलाव आईआईटीज को वैश्विक तौर पर प्रसिद्ध अनुसंधान संस्थान बनाने में भी मदद करेंगे। आईआईटी दिल्ली के निदेशक रामगोपाल राव ने कहा, 'हमारा रिसर्च आउटपुट हमारे ग्रैजुएट छात्रों की वजह से बढ़ रहा है। रिसर्च आउटपुट रैंकिंग तय करने का एक पैमाना है। इसलिए हमारी रैंकिंग में सुधार हो रहा है।'
नए कोर्स पर काम
चूंकि आईआईटी और आईआईएससी रिसर्च के नए मैदानों पर काम कर रहे हैं इसलिए वे नए कोर्स भी शुरू कर रहे हैं। आईआईटी बॉम्बे मैथमेटिक्स, अर्थ साइंस, बायॉलजी, मैनेजमेंट, ह्यूमैनिटीज और सोशल साइंसेज में नए अंडरग्रैजुएट प्रोग्राम शुरू करने की योजना बना रहा है। फिलहाल फिल्म निर्माण में मास्टर प्रोग्राम विचाराधीन है। फाइन आर्ट्स में भी मास्टर प्रोग्राम पर संस्थान विचार कर रहा है।
आईआईटी मद्रास में 2014 में डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नॉलजी द्वारा कंबस्चन रिसर्च पर पहला इंटरडिसिप्लिनरी सेंटर खोला गया।
कुछ आईआईटी ने छात्रों को पूरी तरह नए तरीके से सोचने के लिए प्रेरित किया है। आईआईटी मद्रास में छात्रों को तीसरे साल के साथ इंटरडिसिप्लिनरी प्रोग्राम करने का विकल्प ऑफर किया जा रहा है। आईआईटी गांधीनगर एक्सप्लोरर फेलोशिप के नाम से एक फेलोशिप दे रहा है। इसमें छह छात्रों को हर साल देश के सात राज्यों के दौरे पर भेजा जाता है। इसका मकसद है कि छात्र देश की सभी विविधता को देखें और वहां की समस्याओं को हल करने के लिए अनोखा तरीका निकालें।
कुछ असंभव काम जिसे संभव बनाने के मिशन पर काम कर रहे IITs और IISc
आईआईटी बॉम्बे-वरुण भालेराव एक जटिल टेलिस्कोप और ग्रैविटेशनल अस्ट्रॉनमी समकक्षों के लिए स्पेस हार्डवेयर बनाने पर काम कर रहे हैं।
आईआईटी हैदराबाद-निशांत डोंगरी मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर काम कर रहे हैं।
किरण कुची 5जी सिस्टम्स पर काम कर रहे हैं।
आईआईटी दिल्ली-मनन सूरी इंसानी दिमाग की संरचना से प्रेरित माइक्रोचिप तैयार कर रहे हैं। उनको एमआईटी द्वारा टेक रिव्यूज 35 इनोवेटर्स अंडर 35 लिस्ट में इस साल शामिल किया गया।
आईआईएसी बेंगलुरु-प्रमोद कुमार ऐसे टर्बाइन पर काम कर रहे हैं जिसमें स्टीम की बजाए कार्बन डाई ऑक्साइड का इस्तेमाल होगा। इसका मतलब होगा कि टर्बाइन का आकार दस गुना कम हो जाएगा।
आईआईटी मद्रास-केमिस्ट्री के प्रफेसर टी.प्रदीप जल पर एक मल्टिडिस्पिलिनरी सेंटर खोल रहे हैं जहां बुनियादी अनुसंधान और प्रॉडक्ट डिवेलपमेंट से लेकर स्टार्टअप इंक्यूबेशन और मैन्युफैक्चरिंग पर काम होगा।
देश के IITs और IISc ने तरक्की का एक लंबा सफर तय किया है और अभी उनका यह सफर जारी है। सफर के इस क्रम में ये संस्थान अब उन चीजों पर भी काम कर रहे हैं जिनको कभी असंभव समझा जाता था। आइये जानते हैं कि कैसे IITs और IISc असंभव को संभव बनाने के मिशन पर काम कर रहे हैं...
वरुण भालेराव ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (आईआईटी), बाम्बे से इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग की थी लेकिन उनको कभी उम्मीद नहीं थी कि उनको आईआईटी बॉम्बे में पढ़ाने का मौका मिलेगा। इसका कारण यह है कि इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग के बाद उन्होंने कैलिफॉर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से अस्ट्रॉनमी में पीएचडी की। उस समय आईआईटी बॉम्बे के लिए अस्ट्रॉनमी एक अजनबी विषय था। लेकिन 2017 में भालेराव उस समय चौंक गए जब आईआईटी बॉम्बे ने उनको पहले अस्ट्रॉनमर के तौर पर नियुक्त कर लिया। इसके अलावा एक साल के अंदर आईआईटी-बॉम्बे ने चार और अस्ट्रॉनमर को हायर किया। अब भालेराव और उनकी टीम एक विशिष्ट टेलिस्कोप बनाने पर काम कर रही है। आईआईटी बॉम्बे के असिस्टेंट प्रफेसर और सोशल साइंटिस्ट अनुष कपाड़िया का कहना है कि आईआईटीज जिस बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं, आईआईटी बॉम्बे उसका आईना है। उन्होंने कहा, 'हम शिक्षा के प्रारूप को बदलने के लिए काम कर रहे हैं।'
प्रतिभा पलायन को रोकने का प्रयास
प्रतिभा पलायन भारत की बड़ी समस्या रही है लेकिन 2012 के बाद पिछले पांच सालों में प्रतिभा पलायन का रिवर्स रूप सामने आया है। बड़ी संख्या में वैज्ञानिक और इंजिनियर्स देश लौटे हैं और ज्यादातर को सर्वश्रेष्ठ आईआईटीज, आईआईएससी और अन्य प्रमुख संस्थानों में जगह मिली है। डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नॉलजी (डीएसटी) के डेटा के मुताबिक, 2012 से पांच साल पहले के मुकाबले पांच साल बाद विदेश से लौटने वाले असाधारण युवा वैज्ञानिकों को दी जाने वाली फेलोशिप में 70 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इनमें से कई युवा वैज्ञानिक और इंजिनियर्स ने आईआईटीज, आईआईएससी और उभरते भारतीय वैज्ञानिक शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान को जॉइन किया है।
पिछले पांच सालों में आईआईटी मद्रास ने 25-30 युवा फैकल्टी को भर्ती किया है। 2012 के बाद से आईआईटी बॉम्बे ने 30 से ज्यादा प्रफेसरों को हायर किया है। अगले कुछ सालों में आईआईसी बड़ी संख्या में युवा फैकल्टी को भर्ती करने की योजना बना रहा है। संस्थानों द्वारा युवा फैकल्टी पर फोकस करने का नतीजा यह सामने आया है कि देश के कुछ प्रमुख संस्थानों में 1980 तक शोधकर्ताओं की औसत आयु जहां 60 साल थी अब घटकर 40 साल से नीचे हो गई है।
रिसर्च पर फोकस
अब चूंकि आईआईटीज का फोकस रिसर्च पर ज्यादा बढ़ता जा रहा है, इसलिए वहां छात्रों की आबादी में भी बदलाव हो रहा है। पहले ये संस्थान मुख्य रूप से अंडरग्रैजुएट छात्रों के संस्थान थे लेकिन अब यहां मास्टर्स और पीएचडी के स्टूडेंट्स की भरमार है। उदाहरण के लिए आईआईटी दिल्ली में अब ग्रैजुएट छात्रों की संख्या करीब 65 फीसदी है। ये बदलाव आईआईटीज को वैश्विक तौर पर प्रसिद्ध अनुसंधान संस्थान बनाने में भी मदद करेंगे। आईआईटी दिल्ली के निदेशक रामगोपाल राव ने कहा, 'हमारा रिसर्च आउटपुट हमारे ग्रैजुएट छात्रों की वजह से बढ़ रहा है। रिसर्च आउटपुट रैंकिंग तय करने का एक पैमाना है। इसलिए हमारी रैंकिंग में सुधार हो रहा है।'
नए कोर्स पर काम
चूंकि आईआईटी और आईआईएससी रिसर्च के नए मैदानों पर काम कर रहे हैं इसलिए वे नए कोर्स भी शुरू कर रहे हैं। आईआईटी बॉम्बे मैथमेटिक्स, अर्थ साइंस, बायॉलजी, मैनेजमेंट, ह्यूमैनिटीज और सोशल साइंसेज में नए अंडरग्रैजुएट प्रोग्राम शुरू करने की योजना बना रहा है। फिलहाल फिल्म निर्माण में मास्टर प्रोग्राम विचाराधीन है। फाइन आर्ट्स में भी मास्टर प्रोग्राम पर संस्थान विचार कर रहा है।
आईआईटी मद्रास में 2014 में डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नॉलजी द्वारा कंबस्चन रिसर्च पर पहला इंटरडिसिप्लिनरी सेंटर खोला गया।
कुछ आईआईटी ने छात्रों को पूरी तरह नए तरीके से सोचने के लिए प्रेरित किया है। आईआईटी मद्रास में छात्रों को तीसरे साल के साथ इंटरडिसिप्लिनरी प्रोग्राम करने का विकल्प ऑफर किया जा रहा है। आईआईटी गांधीनगर एक्सप्लोरर फेलोशिप के नाम से एक फेलोशिप दे रहा है। इसमें छह छात्रों को हर साल देश के सात राज्यों के दौरे पर भेजा जाता है। इसका मकसद है कि छात्र देश की सभी विविधता को देखें और वहां की समस्याओं को हल करने के लिए अनोखा तरीका निकालें।
कुछ असंभव काम जिसे संभव बनाने के मिशन पर काम कर रहे IITs और IISc
आईआईटी बॉम्बे-वरुण भालेराव एक जटिल टेलिस्कोप और ग्रैविटेशनल अस्ट्रॉनमी समकक्षों के लिए स्पेस हार्डवेयर बनाने पर काम कर रहे हैं।
आईआईटी हैदराबाद-निशांत डोंगरी मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर काम कर रहे हैं।
किरण कुची 5जी सिस्टम्स पर काम कर रहे हैं।
आईआईटी दिल्ली-मनन सूरी इंसानी दिमाग की संरचना से प्रेरित माइक्रोचिप तैयार कर रहे हैं। उनको एमआईटी द्वारा टेक रिव्यूज 35 इनोवेटर्स अंडर 35 लिस्ट में इस साल शामिल किया गया।
आईआईएसी बेंगलुरु-प्रमोद कुमार ऐसे टर्बाइन पर काम कर रहे हैं जिसमें स्टीम की बजाए कार्बन डाई ऑक्साइड का इस्तेमाल होगा। इसका मतलब होगा कि टर्बाइन का आकार दस गुना कम हो जाएगा।
आईआईटी मद्रास-केमिस्ट्री के प्रफेसर टी.प्रदीप जल पर एक मल्टिडिस्पिलिनरी सेंटर खोल रहे हैं जहां बुनियादी अनुसंधान और प्रॉडक्ट डिवेलपमेंट से लेकर स्टार्टअप इंक्यूबेशन और मैन्युफैक्चरिंग पर काम होगा।
Source : navbharattimes[dot]indiatimes[dot]com
No comments:
Post a Comment