नई दिल्ली
अगर जज्बा हो और कठिन परिश्रम की ललक हो तो सफलता मिलने से कोई नहीं रोक सकता और यह बाद मोहम्मद आमिर अली के रूप में एकदम सच साबित हो गई है। दिल्ली के जामिया नगर में रहने वाले मोहम्मद आमिर अली को अमेरिका की एक कंपनी ने 70 लाख रुपये सालाना का पैकेज दिया है।
मोहम्मद ने जामिया मिलिया इस्लामिया से पढ़ाई की। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले मोहम्मद के पिता पेशे से इलेक्ट्रिशन हैं। जैसे-तैसे उन्होंने बेटे मोहम्मद को पढ़ाया, लेकिन यह सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन उनके बेटे को अमेरिका की एक बड़ी कंपनी में लाखों के पैकेज वाली नौकरी मिल जाएगी। यह पहली बार है जब जामिया के किसी छात्र को अमेरिका में नौकरी मिली है।
ऐसे मिला पैकेज
मोहम्मद आमिर अली का इलेक्ट्रिक वीइकल के प्रति काफी क्रेज़ था। यही वजह थी कि जब उनके पिता ने एक सेकंड हैंड कार लेकर मोहम्मद को दी तो उन्होंने उसे इलेक्ट्रिक चार्जिंग कार में बदल दिया। धीरे-धीरे उनकी उस कार के चर्चे दूर-दूर तक फैलने लगी। जामिया की वेबसाइट पर भी मोहम्मद और उनके इलेक्ट्रिक वीइकल के काम के बारे में जानकारी दी गई। मोहम्मद और उनके काम के चर्चे अमेरिका तक भी पहुंच गए और। वहां नॉर्थ कैरोलिना की फ्रिसन मोटर वर्क्स नाम की कंपनी को मोहम्मद का काम पसंद आया और उसने मोहम्मद को जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के ज़रिए संपर्क किया व बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम इंजिनियर के तौर पर पैकेज ऑफर किया।
काम को मिला प्लैटफॉर्म, सपनों को उड़ान
सात भाई-बहनों में दूसरे नंबर के मोहम्मद आमिर अली को जामिया मिलिया इस्लामिया स्कूल के बोर्ड एग्जाम्स में अच्छे मार्क्स मिले थे, बावजूद इसके वह जामिया के बीटेक कोर्स का ऐडमिशन क्रैक नहीं कर पाए। बाद में उनका सिलेक्शन झारखंड के एनआईटी में आर्किटेक्चर कोर्स के लिए हो गया। 2015 में मोहम्मद ने मकैनिकल इंजिनियरिंग में डिप्लोमा के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया में ऐडमिशन लिया। इसके बाद तो मोहम्मद के इलेक्ट्रिक वीइकल के लिए क्रेज़ को एक प्लैटफॉर्म मिल गया।
मोहम्मद अली ने कहा, 'भारत में इलेक्ट्रिक वीइकल्स के लिए चार्जिंग इन्फ्रस्ट्रक्चर सबसे बड़ा चैलेंज है। अगर मैं अपने सपने में कामयाब हो गया तो वाहनों को चार्ज करने की लागत एकदम शून्य होगी। पहले मेरे शिक्षकों ने मेरी बातों पर यकीन नहीं किया क्योंकि यह एकदम नया क्षेत्र था, लेकिन असिस्टेंट प्रोफेसर वकार आलम ने मेरे काम में मौजूद संभावना को पहचाना और मेरा मार्गदर्शन किया। मैंने अपनी रिसर्च का एक प्रोटोटाइप बनाया और उसे जामिया के तालिमी मेला में दिखाया। इसके अलावा सेंटर फॉर इनोवेशन ऐंड आन्ट्रप्रनर्शिप को भी मैंने अपना काम दिखाया। सीआईई के डायरेक्टर प्रोफेसर जीशान हुसैन ने मेरे प्रॉजेक्ट को कई स्तरों पर प्रदर्शित किया और उसे यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर भी अपलोड करवाया।'
यहीं से मोहम्मद का आइडिया अमेरिका की एक कंपनी को पसंद आ गया और वह मोहम्मद को करीब 70 लाख का पैकेज देने से खुद को रोक नहीं सकी।
मोहम्मद के पिता बेटे की इस कामयाबी से बेहद खुश हैं और बताया, 'मोहम्मद मुझसे इलेक्ट्रिकल उपकरणों से संबंधित काफी सवाल पूछता था, लेकिन इतने सालों तक एक इलेक्ट्रिशन होने के बाद भी मैं उसके सवालों को जवाब नहीं दे पाता था। हालांकि मैं हमेशा ही उसे कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करता था। आज उसका फल मिल गया है और मैं बहुत खुश हूं।'
अगर जज्बा हो और कठिन परिश्रम की ललक हो तो सफलता मिलने से कोई नहीं रोक सकता और यह बाद मोहम्मद आमिर अली के रूप में एकदम सच साबित हो गई है। दिल्ली के जामिया नगर में रहने वाले मोहम्मद आमिर अली को अमेरिका की एक कंपनी ने 70 लाख रुपये सालाना का पैकेज दिया है।
मोहम्मद ने जामिया मिलिया इस्लामिया से पढ़ाई की। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले मोहम्मद के पिता पेशे से इलेक्ट्रिशन हैं। जैसे-तैसे उन्होंने बेटे मोहम्मद को पढ़ाया, लेकिन यह सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन उनके बेटे को अमेरिका की एक बड़ी कंपनी में लाखों के पैकेज वाली नौकरी मिल जाएगी। यह पहली बार है जब जामिया के किसी छात्र को अमेरिका में नौकरी मिली है।
ऐसे मिला पैकेज
मोहम्मद आमिर अली का इलेक्ट्रिक वीइकल के प्रति काफी क्रेज़ था। यही वजह थी कि जब उनके पिता ने एक सेकंड हैंड कार लेकर मोहम्मद को दी तो उन्होंने उसे इलेक्ट्रिक चार्जिंग कार में बदल दिया। धीरे-धीरे उनकी उस कार के चर्चे दूर-दूर तक फैलने लगी। जामिया की वेबसाइट पर भी मोहम्मद और उनके इलेक्ट्रिक वीइकल के काम के बारे में जानकारी दी गई। मोहम्मद और उनके काम के चर्चे अमेरिका तक भी पहुंच गए और। वहां नॉर्थ कैरोलिना की फ्रिसन मोटर वर्क्स नाम की कंपनी को मोहम्मद का काम पसंद आया और उसने मोहम्मद को जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के ज़रिए संपर्क किया व बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम इंजिनियर के तौर पर पैकेज ऑफर किया।
काम को मिला प्लैटफॉर्म, सपनों को उड़ान
सात भाई-बहनों में दूसरे नंबर के मोहम्मद आमिर अली को जामिया मिलिया इस्लामिया स्कूल के बोर्ड एग्जाम्स में अच्छे मार्क्स मिले थे, बावजूद इसके वह जामिया के बीटेक कोर्स का ऐडमिशन क्रैक नहीं कर पाए। बाद में उनका सिलेक्शन झारखंड के एनआईटी में आर्किटेक्चर कोर्स के लिए हो गया। 2015 में मोहम्मद ने मकैनिकल इंजिनियरिंग में डिप्लोमा के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया में ऐडमिशन लिया। इसके बाद तो मोहम्मद के इलेक्ट्रिक वीइकल के लिए क्रेज़ को एक प्लैटफॉर्म मिल गया।
मोहम्मद अली ने कहा, 'भारत में इलेक्ट्रिक वीइकल्स के लिए चार्जिंग इन्फ्रस्ट्रक्चर सबसे बड़ा चैलेंज है। अगर मैं अपने सपने में कामयाब हो गया तो वाहनों को चार्ज करने की लागत एकदम शून्य होगी। पहले मेरे शिक्षकों ने मेरी बातों पर यकीन नहीं किया क्योंकि यह एकदम नया क्षेत्र था, लेकिन असिस्टेंट प्रोफेसर वकार आलम ने मेरे काम में मौजूद संभावना को पहचाना और मेरा मार्गदर्शन किया। मैंने अपनी रिसर्च का एक प्रोटोटाइप बनाया और उसे जामिया के तालिमी मेला में दिखाया। इसके अलावा सेंटर फॉर इनोवेशन ऐंड आन्ट्रप्रनर्शिप को भी मैंने अपना काम दिखाया। सीआईई के डायरेक्टर प्रोफेसर जीशान हुसैन ने मेरे प्रॉजेक्ट को कई स्तरों पर प्रदर्शित किया और उसे यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर भी अपलोड करवाया।'
यहीं से मोहम्मद का आइडिया अमेरिका की एक कंपनी को पसंद आ गया और वह मोहम्मद को करीब 70 लाख का पैकेज देने से खुद को रोक नहीं सकी।
मोहम्मद के पिता बेटे की इस कामयाबी से बेहद खुश हैं और बताया, 'मोहम्मद मुझसे इलेक्ट्रिकल उपकरणों से संबंधित काफी सवाल पूछता था, लेकिन इतने सालों तक एक इलेक्ट्रिशन होने के बाद भी मैं उसके सवालों को जवाब नहीं दे पाता था। हालांकि मैं हमेशा ही उसे कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करता था। आज उसका फल मिल गया है और मैं बहुत खुश हूं।'
Source : navbharattimes[dot]indiatimes[dot]com
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