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Wednesday, 30 May 2018

जज्बे को सलाम: बीमारी नहीं बनी बाधा, CBSE टॉपर बनीं सान्या

despite rare genetic disorder, ghaziabad girl shows nerves of steel
गाजियाबाद
सीबीएसई हाई स्कूल की स्पेशल कैटिगरी में 97.8 प्रतिशत अंक (489) लाकर देश में संयुक्त रूप से पहला स्थान लाने वाली सान्या जन्म से जीरो विजन की परेशानी से झेल रही हैं। सान्या ने माता-पिता की आंखों से दुनिया को देखा और समझा। सान्या की इस सफलता पर उसके माता-पिता की आंखों में खुशी के आंसू हैं और वे अपनी इकलौती बेटी पर गर्व कर रहे हैं। सान्या के पिता अनिल गांधी कारोबारी हैं और मां हाउस वाइफ। संयुक्त परिवार में चार बच्चे और भी हैं। सभी के लिए सान्या बेहद खास है, इसलिए नहीं कि वह जीरो वीजन की शिकार है बल्कि इसलिए कि वह छोटी सी उम्र में सबसे ज्यादा समझदार और शांत है। सबकी सहायता के लिए हमेशा तैयार रहती है और अपनी हेल्प खुद करती है। घर में कहीं भी जाने के लिए उसे किसी की सहायता की जरूरत नहीं होती। सान्या को काबिल बनाने के लिए उसके माता-पिता ने कड़ी मेहनत की और धैर्य से काम लिया।

सान्या के पिता अनिल बताते हैं कि सान्या का जन्म अक्टूबर 2003 में हुआ था। जन्म के कुछ दिनों बाद ही उन्हें उसके नो विजन होने का पता चला। इसके बाद उन्होंने एनसीआर और देश के टॉप आई स्पेशलिस्ट को दिखाया। तमाम भागदौड़ के बाद पता चला कि सान्या को ऑप्टिकल नर्व नामक बीमारी है, जो लाइलाज है और उसे जीवनभर इस बीमारी के साथ ही रहना होगा। यह पता चलने के बाद उन्हें बहुत दु:ख हुआ, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। कुछ बड़ी होने पर उन्होंने सान्या को दिल्ली के श्राॉफ आई सेंटर में ट्रेनिंग दिलवाई। जहां उसे ब्रेल लिपी और जॉ सॉफ्टवेयर चलाना सिखाया गया। इसके बाद सान्या को परिवर्तन स्कूल में ऐडमिशन दिलवाया। स्कूल में प्रधानाचार्य और टीचर्स ने पढ़ाई में उसकी बहुत हेल्प की। इसके अलावा घर में भी उसका पूरा ध्यान रखा गया। सान्या की मां सारिका गांधी बताती हैं उनके लिए वह दुनिया की सबसे अच्छी बेटी है। सान्या थोड़े में बहुत समझती है। उसे कोई भी बात दूसरी बार समझाने की कभी जरूरत नहीं पड़ी। घर में वह सामान्य बच्चों की तरह ही रहती है। कभी-कभी तो लगता है कि वह स्पेशल नहीं नार्मल चाइल्ड ही है।

अनिल गांधी ने बताया कि वे तीन भाई हैं और माता-पिता के साथ ही रहते हैं। सान्या दादा-दादी को बेहद प्रिय है। उन्होंने बताया कि परिवर्तन स्कूल 8वीं तक ही है। सान्या के स्कूल पूरा करने के बाद उनके सामने सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि आगे की पढ़ाई के लिए उसका एडमिशन कौन से स्कूल में करवाया जाए। सान्या की काबलियत को देखते हुए उसे किसी स्पेशल कैटिगरी के स्कूल में नहीं भेजना चाहते थे। काफी खोजबीन और परिवर्तन स्कूल प्रबंधन ने उन्हें उत्तम स्कूल फॉर गर्ल्स में एडमिशन दिलवाने की सलाह दी। यहां सान्या को केवल इंटरव्यू के बाद ही दाखिला दे दिया गया, उसका टेस्ट भी नहीं लिया गया। अनिल गांधी ने बताया कि सान्या ने हाई स्कूल की परीक्षा अपने लैपटॉप के जरिए दी, जो इस साल से पहली बार सीबीएसई ने अनुमति दी है।

क्या कहती हैं टीचर्स
उत्तम स्कूल फॉर गर्ल्स की प्रधानाचार्य शालिनी बताती हैं कि सान्या जब उनके पास आई थी तो कुछ देर के इंटरव्यू में ही उसकी सूझबूझ और काबलियत का पता चल गया था। जिसके बाद उसका टेस्ट लेने की जरूरत ही नहीं पड़ी। हालांकि उन्होंने इतनी ब्रिलियंट स्टूडेंट को और आगे बढ़ाने के लिए एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और स्कूल में टीचर सालेह को उसकी गार्जियन बनाया। साहेल बताती हैं कि सान्या को कुछ भी दोबारा समझाने की जरूरत नहीं पड़ती थी। उसे गणित विषय को लेकर कुछ परेशानी जरूर होती थी, लेकिन वह हिम्मत नहीं हारती थी।

दुनिया बेहद खूबसूरत है
सान्या का कहना है कि अभी उसका सिर्फ एक लक्ष्य है पढ़ाई करना। इसके बाद प्रशासनिक सेवा में जाना चाहती हैं। उन्होंने दार्शनिक अंदाज में कहा, दुनिया बहुत खूबसूरत है, उसका दीदार करो। हर बच्चे के अंदर कुछ न कुछ अच्छाई होती है, उस अच्छाई का आंकलन मां-बाप करें और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें।
Source : navbharattimes[dot]indiatimes[dot]com

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